उर्वरक नीति
कृषि के निरंतर विकास और संतुलित पोषक तत्व अनुप्रयोग को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है कि किसानों को उर्वरक वहनीय मूल्य पर उपलब्ध कराया जाए। इसी उद्देश्य से एकमात्र नियंत्रित उर्वरक यूरिया को सांविधिक अधिसूचित एकसमान बिक्री मूल्य पर बेचा जा रहा है, और नियंत्रणमुक्त फॉस्फेटयुक्त और पोटाशयुक्त उर्वरकों को एक सांकेतिक अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) पर बेचा जा रहा है। उत्पादकों द्वारा नियंत्रित मूल्यों के कारण उनके निवेश पर एक उचित प्रतिलाभ अर्जित करने के संबंध में आ रही कठिनाइयों को, यूरिया इकाइयों के लिए नई मूल्य निर्धारण नीति के अंतर्गत और नियंत्रणमुक्त फॉस्फेटयुक्त और पोटाशयुक्त उर्वरकों के लिए रियायत योजना के जरिए सहायता करके, कमा किया जा रहा है। सांविधिक तौर पर अधिसूचित बिक्री मूल्य और सांकेतिक एमआरपी सामान्यत: उत्पादन इकाई की उत्पादन लागत से कम होते हैं। उत्पादन लागत और बिक्री मूल्य/एमआरपी के बीच के अंतर को, उत्पादकों को राजसहायता/रियायत के रूप में भुगतान किया जाता है। चूंकि स्वदेशी और आयातित दोनों उर्वरकों का उपभोक्ता मूल्य समान रूप से निर्धारित किया जाता है इसलिए आयातित यूरिया और नियंत्रणमुक्त फॉस्फेटयुक्त और पोटाशयुक्त उर्वरकों के लिए भी वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
अ. यूरिया मूल्य-निर्धारण नीति:
(क) नई मूल्य निर्धारण नीति (एनपीएस)
(।) एनपीएस-।
यूरिया के लिए से नई मूल्य-निर्धारण नीति 1 अप्रैल, 2003 लागू की गई थी। एनपीएस का प्रथम चरण 1 अप्रैल, 2003 से 31 मार्च, 2004 तक एक वर्ष की अवधि के लिए था। उपर्युक्त नीति का मुख्य विचार और लक्ष्य अतिदक्ष फीडस्टॉक, नवीनतम प्रौद्योगिकी के प्रयोग पर आधारित अंतरराष्ट्रीय मानकों के दक्ष मानदण्डों के प्रोत्साहित करना तथा इकाइयों की व्यवहार्य दर की वापसी भी सुनिश्चित करना था। व्यवहार्य दर भी सुनिश्चित करना था।
(।।) एनपीएस-।।
दूसरा चरण 1 अप्रैल, 2004 से 31 मार्च, 2006 तक दो वर्ष की अवधि के लिए था जिसे बढ़ाकर 30 सितम्बर, 2006 तक कर दिया गया था। एनपीएस के दूसरे चरण के दौरान यूरिया इकाइयों के लिए पूर्वनिश्चित ऊर्जा मानक दिए गए थे। उक्त नीति के अनुसार वृद्धि/कमी का आकलन तिमाही/वार्षिक आधार पर किया जाना था। तथापि, यदि किसी इकाई की वास्तविक ऊर्जा खपत, पूर्व निश्चित ऊर्जा मानकों से कम होती है तो परिणामी अधिक्य को सबसे सस्ते इनपुट की मूलदर में वृद्धि/कमी के आधार पर आंका जाएगा।
(।।।) एनपीएस-।।।
नई मूल्य निर्धारण नीति का तीसरा चरण 8 मार्च, 2007 को अधिसूचित किया गया था और उसे 1 अक्तूबर, 2006 से 31 मार्च, 2010 तक प्रभावी किया गया था। एनपीएस के चरण-।।। के दौरान यूरिया के अतिरिक्त उत्पादन को प्रोत्साहित करने संबंधी नीति उसकी अधिसूचना जारी होने की तारीख से तब तक के लिए लागू की गई थी जब इकाइयों द्वारा यूरिया का अतिरिक्त उत्पादन उनकी उत्पादन की 100% से अधिक हो जाता है। ऐसी स्थिति में यह विद्यमान नीति के अंतर्गत शासित होगा और प्राप्त होने वाला निवल लाभ सरकार और इकाई के बीच 65:35 के अनुपात में होगा।
एनपीएस-।।। में इसकी अधिसूचनाओं के बाद निम्नलिखित संशोधन किए गए हैं:-
नई मूल्य निर्धारण योजना के चरण-।।। के बाद मौजूदा यूरिया हेतु नीति बनाना
उर्वरक नीति की समीक्षा के लिए गठित मंत्री के समूह (जीओएल) ने 5 जनवरी, 2011 को आयोजित बैठक में श्री सौमित्र चौधुरी, सदस्य योजना आयोग की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने का निर्णय लिया है जोकि यूरिया में पोषक-तत्व आधारित राजसहायता (एनबीएस) को लागू करने के प्रस्ताव की समीक्षा के पश्चात् उपयुक्त सिफारिशें करेगी।
(ख) मौजूदा यूरिया इकाइयों के लिए संशोधित एनपीएस-।।।
सरकार ने हाल में मौजूदा यूरिया इकाइयों के लिए संशोधित एनपीएस-।।। को 2 अप्रैल, 2014 को अधिसूचित किया है जिसका उद्देश्य लागत वर्ष 2002-03 के स्तर पर नियत लागत के स्थिर होने के कारण मौजूदा यूरिया इकाइयों की अल्पवसूलियों के मुद्दे पर ध्यान देना था। यह नीति अधिसूचना जारी होने की तारीख से एक वर्ष की अवधि के लिए लागू होगी। इस नीति में यूरिया इकाइयों की रियायत दरों की गणना को, कुछेक संशोधनों सहित एनपीएस-।। के अनुसार जारी रखने पर परिकल्पना की गई है। उक्त नीति के अनुसार मौजूदा यूरिया इकाइयों को 350 रुपए प्रति मी.टन की अधिकतम अतिरिक्त नियत लागत (4 घटकों अर्थात् वेतन एवं मजदूरी, ठेका मजदूर, बिक्री खर्च और मरम्मत एवं रख-रखाव में वृद्धि के लिए) या 2002-03 की तुलना में 2012-13 के दौरान नियत लागत के उपर्युक्त 4 घटकों में वास्तविक वृद्धि के अनुसार, जो भी कम हो, भुगतान किया जाएगा। तथापि, केएफसीएल और बीवीएफसीएल-।। के मामलों में, जिनके लिए 4 घटकों के संबंध में वर्ष 2002-03 या 2012-13 के लिए लागत आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, उन्हें सबसे बाद वाले वर्ष के उपलब्ध प्रमाणित लागत आंकड़े के अनुसार इन 4 घटकों में 521 रुपए प्रति मी.टन के अतिरिक्त हुई वास्तविक वृद्धि किन्तु अधिकतम 350 रुपए मी.टन के हिसाब से भुगतान किया जाएगा।
नीति में उपर्युक्त अतिरिक्त नियत लागत को ध्यान में रखते हुए 2300 रुपए प्रति मी.टन की न्यूनतम नियत लागत या वर्ष 2012-13 के दौरान वास्तविक नियत लागत, जो भी कम हो, का भुगतान किए जाने का भी प्रावधान है। यह सभी यूरिया इकाइयों द्वारा उपलब्ध कराये गये वर्ष 2012-13 के प्रमाणित नियत लगात आकड़ों पर निर्भर होगा। इसके अलावा, उन सक्षम इकाइयों जो गैस में परिवर्तित तथा 30 वर्ष से अधिक पुरानी हैं के हितों को संरक्षण देने के उद्देश्य से नीति में इन इकाइयों को 150 रुपए प्रति मी.टन की विशेष क्षतिपूर्ति प्रदान करने का प्रावधान है।
उच्च लागत वाली नेफ्था आधारित यूरिया इकाइयों नामत: स्पिक-तूतीकोरिन, एमएफएल मणलि और एमसीएफएल मंगलौर के उत्पादन को जारी रखने का प्रावधान भी संशोधित एनपीएस-।।। में किया गया है जब तक कि इन इकाइयों को गैस की उपलब्धता और कनेक्टिविटी उपलब्ध न हो जाए, या जून 2014 तक, जो भी पहले हो।
वर्ष 92 के पश्चात् नेफ्था आधारित समूह नामत: इफ्को, फूलपुर-।। और सीएफसीएल-।। की दो इकाइयों की क्षमता उपयोगिता 95% से बढ़कर 98% हो गई है जोकि गैस आधारित इकाइयों के बराबर है। एफआईसीसी इन इकाइयों के लिए निर्धारित लागत की समूह औसत पर पुन: कार्य कर सकती है।
(ख) यूरिया क्षेत्र में निवेश नीति
नई यूरिया परियोजनाओं की स्थापना और मौजूदा यूरिया परियोजनाओं का विस्तार करने के लिए 29.01.2004 को एक मूल्य-निर्धारण समिति का गठन, किया गया था ताकि देश में कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए यूरिया की बढ़ी मांग को पूरा करने के लिए यूरिया की घरेलू उत्पादन क्षमता में संवर्धन किया जा सके। नीति का उद्देश्य उद्यमियों को उर्वरक क्षेत्र में उनकी निवेश योजनाओं के बारे में निर्णय लेने में सक्षम बनाना है। नीति से अपेक्षा थी कि इससे अंतर्राष्ट्रीय दक्षता मानकों के साथ संयंत्रों को लगाने हेतु प्रोत्साहन मिलेगा और नई परियोजनाओं तथा मौजूदा इकाइयों के विस्तार में नए निवेश आ सकेंगे।
(क) नई निवेश नीति-2008
यह नीति दीर्घावधिक औसत लागत (एलआरएसी) के सिद्धांत पर आधारित थी और इस क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने के लिए सफल नहीं हुई। प्राकृतिक गैस, जो यूरिया के उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण फीडस्टॉक है, की अनुपलब्धता भी यूरिया के उत्पादन हेतु स्वेदेशी क्षमता को आगे और बढ़ाने में एक बड़ी बाधा रही है। तथापि, 2009 के बाद से गैस की उपलब्धता में सुधार के प्रक्षेपण से, यह उम्मीद की जाती है कि इससे उर्वरक क्षेत्र में भी निवेश आएगा। इसके अलावा 4 सितम्बर, 2008 की अधिसूचना के जरिए सरकार ने इस क्षेत्र में अत्यावश्यक निवेश को आकर्षित करने के लिए यूरिया क्षेत्र हेतु नई निवेश नीति अधिसूचित की 1 यह नीति आईपीपी बेंचमार्क पर आधारित थी।
नीति से अपेक्षा थी की इससे आईपीपी से कम मूल्य पर यूरिया की उपलब्धता के रूप में सरकार की बचतों में बढ़ोतरी होगी और साथ ही आयात घटने के कारण आयात मूल्य नीचे जाने से अप्रत्यक्ष बचत भी होगी। नई निवेश नीति का उद्देश्य विद्यमान यूरिया इकाइयों का पुनरुद्धार, विस्तार पुनरुत्थान और ग्रीनफील्ड/ब्राउनफील्ड परियोजनाओं की स्थापना थी। नीति से खपत और घरेलू उत्पादन के बीच अन्तर को अगले पांच वर्षों में पूरा हो जाने की संभावना थी बशर्तें उचित मूल्य पर गैस की सुनिश्चित एवं पर्याप्त उपलब्धता हो। नई निवेश नीति-2008 की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:-
1. यह नीति क्रमश: 250 अमरिकी डॉलर/मी.टन तथा 425 अमरिकी डॉलर/मी.टन के उपयुक्त न्यूनतम और अधिकतम मूल्यों सहित आयात सममूल्य (आईपीपी) बैंचमार्क पर आधारित है।
1. पुनरुत्थान परियोजनाएं: अमोनिया-यूरिया उत्पादन की मौजूदा श्रृंखला में 1000 करोड़ रुपए तक के निवेश से वर्तमान संयंत्रों की क्षमता में की गई वृद्धि को मौजूदा इकाइयों के पुनरुत्थान के रूप में माना जाएगा। मौजूदा इकाइयों के पुनरुत्थान से उत्पादित अतिरिक्त यूरिया को ऊपर दिए गए सुझाव के अनुसार न्यूनतम और अधिकतम मूल्य सहित 85% आयात सममूल्य की मान्यता दी जाएगी।
1. विस्तार परियोजनाएं: कुछ सामान्य उपयोगी वस्तुओं का उपयोग करके मौजूदा उर्वरक संयंत्रों के परिसर में नया अमोनिया-यूरिया संयंत्र (एक अलग नया अमोनिया-यूरिया श्रृंखला) की स्थापना को विस्तार परियोजना माना जाएगा। इसमें निवेश 3000 करोड़ रुपए की न्यूनतम सीमा से अधिक होना चाहिए। मौजूदा इकाइयों के विस्तार से यूरिया को ऊपर दर्शाए गए अनुसार न्यूनतम और अधिकतम मूल्य सहित 90% आईपीपी की मान्यता दी जाएगी।
4 पुनरुद्धार/ब्राउनफील्ड परियोजनाएं: यदि सार्वजनिक क्षेत्र में बंद इकाइयों का पुनरुद्धार किया जाता है तो हिन्दुस्तान फर्टिलाइजर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचएफसीएल) और फर्टिलाइजर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एफसीआईएल) की पुनरुद्धार की गई इकाइयों से प्राप्त यूरिया को निर्धारित न्यूनतम और अधिकतम मूल्य सहित 95% आपीपी की मान्यता दी जाएगी।
1. ग्रीनफील्ड परियोजनाएं : ग्रीनफील्ड परियोजनाओं के मूल्य-निर्धारण पर निर्णय बोली प्रक्रिया के आधार पर किया जाएगा जो प्रस्तावित नए संयंत्रों के स्थल (राज्यों) की पुष्टि होने के बाद आईपीपी पर छूट होगी।
1. गैस परिवहन प्रभार: विनियंत्रक (गैस) द्वारा यथा निर्धारित वास्तविक आंकड़ों (यूरिया के प्रति मी.टन 5.2 जी.कैलोरी तक) के आधार पर विस्तार और पुनरुद्धार का कार्य करने वाली इकाइयों को अतिरिक्त गैस परिवहन लागत का भुगतान किया जाए बशर्ते कि यूरिया की अधिकतम सीमा 25 अमेरिकी डॉलर प्रति मी.टन हो।
1. गैस का आबंटन: यूरिया क्षेत्र में नए निवेश के लिए केवल गैर-एपीएम गैस पर विचार किया जाएगा।
1. कोयला गैसीकरण आधारित यूरिया परियोजनाएं: कोयला गैसीकरण आधारित यूरिया परियोजनाओं को ब्राउनफील्ड या गैसफील्ड परियोजना, जैसी भी स्थिति हो, के समान माना जाना चाहिए। इसके अलावा, कोयला गैसीकरण प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा दिया जाने वाला कोई अन्य प्रोत्साहन या कर लाभ इन परियोजनाओं को भी दिया जाएगा।
1. विदेशों में संयुक्त उद्यम: गैस सम्पन्न दूसरे देशों में संयुक्त उद्यम को विद्यमान बाजार स्थितियों और संयुक्त उद्यम कंपनी के साथ परस्पर विचार-विमर्श के आधार पर निर्णीत मूल्य के साथ सुनिश्चित उठान करारों के माध्यम से बढ़ावा दिया जाना प्रस्तावित है। तथापि, अधिकतम मूल्य के निर्णय का सिद्धांत प्रति मी.टन 405 अमेरिकी डॉलर सीआईएफ भारत और प्रति मी.टन 225 अमेरिकी डॉलर सीआईएफ भारत के न्यूनतम (हैंडलिंग और बैगिंग लागत सहित) के साथ ग्रीनफील्ड परियोजनाओं के अंतर्गत प्राप्त मूल्य (ग्रीनफील्ड परियोजना की अनुपस्थिति में) या पुनरुद्धार परियोजनाओं के लिए यथा प्रस्तावित आईपीपी के 95% के अंतर्गत प्राप्त मूल्य हो सकता है।
10. प्रस्तावित निवेश नीति के लिए समयावधि: नई नीति की अधिसूचना जारी होने से चार वर्षों के अंदर अतिरिक्त क्षमताओं का उत्पादन शुरू करने वाली पुनरुत्थान परियोजनाएं ही इस छूट की पात्र होगी। इसी तरह, केवल विस्तार और पुनरुद्धार (ब्राउनफील्ड) इकाइयों के उत्पादन, जो नई नीति की अधिसूचना के पॉंच वर्षों के भीतर होते हैं, इस नीति में प्रदत छूट के लिए पात्र होंगे। यदि इस समय-सीमा के भीतर उत्पादन शुरू नहीं होता है, तो ऐसे ब्राउनफील्ड परियोजनाओं को ग्रीनफील्ड परियोजना के समान माना जाएगा, जिसमें मूल्य का निर्धारण सीमित बोली विकल्पों के जरिए होगा। नई नीति के अंतर्गत नए संयुक्त उद्यमों की स्थापना की समयावधि भी पांच वर्ष रखी जाएगी।
(ख) नई निवेश नीति-2012
भारत सरकार ने 02 जनवरी, 2013 को नई निवेश नीति को अधिसूचित किया है जिसका उद्देश्य यूरिया उत्पादन में भारत की आयात निर्भरता को कम करके भविष्य में यूरिया क्षेत्र में नए निवेश को बढ़ावा देना है।
नई निवेश नीति 2012 की महत्वपूर्ण विशेषताएं:-
(।) एनआईपी-2012 में संशोधन
माननीय प्रधानमंत्री के निजी सचिव की अध्यक्षता में 1.7.2013 को हुई बैठक में हुए विचार-विमर्श के अनुसार सीसीईए के जरिए नई निवेश नीति-2012 में ''गांरटीकृत वापसी खरीद'' के स्थान पर उचित सुरक्षा मानकों के साथ अद्यतन घरेलू बिक्री पर राजसहायता दी जाएगा’ रखने के संशोधन करने का निर्णय लिया गया।
इस विभाग ने एनआईपी-2012 में संशोधन 7 अक्तूबर, 2014 को जारी कर दिया है। इस संबंध में इस विभाग को परियोजना प्रस्तावकों से 12 प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। इसके अतिरिक्त, यह विभाग इन प्रस्तावों को, एनआईपी-2012 और उसके संशोधनों के आलोक में जांच रहा है।
(।।।) नियंत्रणमुक्त फास्फेटयुक्त और पोटाशयुक्त (पीएंडके) उर्वरकों के लिए राजसहायता नीति
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1.1 स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही भारत सरकार उर्वरक की बिक्री, मूल्य तथा गुणवत्ता विनियमित करती रही है। इस प्रयोजन से भारत सरकार ने वर्ष 1957 में आवश्यक वस्तु अधिनियम (ईसी एक्ट) के अन्तर्गत उर्वरक नियंत्रण आदेश (एफसीओ) पारित किया। वर्ष 1977 तक उर्वरकों पर पोटाश के सिवाय किसी प्रकार की राजसहायता नही दी जाती थी। पोटाश पर भी केवल 1977 में ही राजसहायता दी गई थी।
1.2 मराठा समिति की सिफारिशों पर सरकार ने नवम्बर, 1977 में नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों के लिए प्रतिधारण मूल्य स्कीम (आरपीएस) लागू की थी। बाद में, फरवरी, 1979 से इसे फास्फेटयुक्त और अन्य मिश्रित उर्वरकों पर भी लागू किया गया और 1982 से इसे एकल सुपर फास्फेट पर भी लागू किया जो 1991 तक जारी रहा। बाद में राजसहायता को आयातित फास्फोटयुक्त और पोटाशयुक्त उर्वरकों पर भी लागू किया गया।
1990 के दशक के आरम्भ के वर्षों में देश अत्याधिक राजकोषीय घाटे का सामना कर रहा था और विदेशी मुद्रा संकट गहराने का भी खतरा था। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार ने जुलाई, 1991 में उर्वरकों के मूल्य में 40 प्रतिशत की वृद्धि की घोषणा की। कुछेक उर्वरक जो राजसहायता स्कीम के अन्तर्गत थे उन्हें नियंत्रणमुक्त कर दिया गया। तत्पश्चात् उर्वरकों के ऊंचे मूल्यों को देखते हुए उनके कम उपभोग की आशंका होने तथा परिणामस्वरूप कम कृषि उत्पादकता होने पर सरकार ने यूरिया के मूल्यों में 10 प्रतिशत वृद्धि वापस ले ली।
1.3 दिसम्बर, 1991 में, सरकार ने उर्वरकों के विभिन्न उत्पादकों के लिए प्रतिधारणीय मूल्यों के परिकलन की विद्यमान विधियों की समीक्षा करने और राजकोष पर बिना भार डाले उर्वरकों के मूल्यों को घटाने के बारे में सुझाव देने के लिए उर्वरक मूल्यों पर एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया। जेपीसी ने 20 अगस्त, 1992 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। समिति के मुख्य निष्कर्ष और सिफारिशें यह थीं कि राजसहायता में वृद्धि का मुख्य कारण आयातित उर्वरकों की लागत में वृद्धि, जुलाई, 1991 में रूपए का अवमूल्यन और 1980 से 1991 तक स्थिर फार्मगेट मूल्य है। समिति उर्वरकों को पूर्णत: नियंत्रणमुक्त रखने के पक्ष में नहीं थी और समिति ने आयातित फास्फेटयुक्त व पोटाशयुक्त उर्वरकों को नियंत्रणमुक्त करने के साथ यूरिया के उपभोक्ता मूल्य में 10 प्रतिशत की मामूली कटौती करने की सिफारिश की।
2. पीएण्डके उर्वरकों के लिए रियायत योजना
2.1 जेपीसी की सिफारिशों के आधार पर, भारत सरकार ने सभी फास्फेटयुक्त और पोटाशयुक्त (पी एंड के) उर्वरकों नामत: डीएपी, एमओपी, एनपीके मिश्रित उर्वरक और एसएसपी को 25 अगस्त, 1992 से नियंत्रणमुक्त कर दिया जो 1977 से प्रतिधारण मूल्य योजना (आरपीएस) के अधीन थे जबकि यूरिया को आरपीएस के अधीन ही रखा गया। चूंकि, नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों (यूरिया) पर सहायता जारी रखी गई जबकि फास्फेटयुक्त उर्वरकों को नियंत्रणमुक्त कर दिया गया जो फास्फेटयुक्त उर्वरकों के मूल्य बाजार में अपेक्षाकृत अधिक हो गए। परिणामस्वरूप, नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों का उत्पादन और उपभोग बढ़ गया और पीएंडके उर्वरकों का उपयोग घट गया। परिणामस्वरूप नाइट्रोजनयुक्त, फास्फोटयुक्त और पोटाशयुक्त उर्वरकों के उपभोग में काफी असंतुलन पैदा हो गया। मृदा की उर्वरकता में असन्तुलन और फास्फेटयुक्त तथा पोटाशयुक्त उर्वरक मूल्यों में वृद्धि के कारण उर्वरकों को वहन न कर पाने की आशंका से भारत सरकार ने मूल्य वृद्धि के प्रभाव को कम करने और संतुलित उर्वरकता को प्रोत्साहित करने के लिए रबी 1992 से फास्फेटयुक्त और पोटाशयुक्त उर्वरकों के लिए तदर्थ रियायत की घोषणा की।
2.2 पीएण्डके उर्वरकों के लिए रियायती योजना का मुख्य प्रयोजन/उद्देश्य किसानों को वहनीय मूल्य पर पीएण्डके उर्वरक उपलब्ध कराना है ताकि उर्वरकों के संतुलित प्रयोग के माध्यम से देश में खाद्य उत्पादकता में वृद्धि की जा सके। रियायत योजना का उद्देश्य उर्वरक क्षेत्र में उद्यमियों द्वारा किए गए निवेश पर उचित दर पर प्रतिलाभ सुनिश्चित करना भी था।
2.3 आरम्भ में तदर्थ रियायत स्कीम डीएपी, एमओपी और एनपीके मिश्रित उर्वरकों पर लागू की गई थी। बाद में इस स्कीम को 1993-94 से एसएसपी पर भी लागू कर दिया गया। रियायतों का वितरण 1992-93 से 1993-94 तक कृषि एवं सहकारिता विभाग द्वारा प्रदान किये गए अनुदानों के आधार पर राज्य सरकारों द्वारा विनिर्माताओं/आयातकों को किया जाता था।
2.4 1997-1998 में कृषि व सहकारिता विभाग ने डीएपी/एनपीके/एमओपी के लिए एक अखिल भारतीय समान अधिकतम खुदरा मूल्य दर्शाना आरम्भ किया। एसएसपी के संबंध में एमआरपी दर्शाने का उत्तरदायित्व राज्य सरकारों का था। जम्मू व कश्मीर तथा पूर्वोत्तर राज्यों के दुर्गम क्षेत्रों में उर्वरकों की आपूर्ति के लिए विशेष भाड़ा राजसहायता प्रतिपूर्ति स्कीम 1997 में लागू की गई थी जो 31.3.2008 तक जारी रही। उर्वरकों की कुल सुपुर्दगी लागत सरकार द्वारा दर्शायी गई एमआरपी से निरपवाद रूप से अधिक रही, फार्म गेट पर उर्वरकों के सुपुर्दगी मूल्य और एमआरपी में अन्तर की क्षतिपूर्ति सरकार द्वारा विनिर्माताओं/आयातकों को राजसहायता के रूप में की जाती थी।
2.5 30 सितम्बर, 2000 तक, उर्वरक राजसहायता संबंधी मामले डीएसी द्वारा देखे जाते थे और उसके बाद ये मामले उर्वरक विभाग द्वारा, समय-समय पर परिवर्तित पैरामीटरों के अनुरूप, देखे जाते रहे। पीएण्डके उर्वरको की एमआरपी 28 फरवरी, 2002 को संशोधित की गई जो डीएपी और एमओपी के मामले में 31.03.2010 तक जारी रही। लेकिन मिश्रित उर्वरकों के मामले में एमआरपी 18 जून, 2008 को संशोधित की गई।
2.6 30 अप्रैल, 2008 तक एसएसपी की एमआरपी की घोषणा संबंधित राज्य सरकारों द्वारा की जाती थी जिसे 01;05.2008 से 30;09.2009 तक की अवधि के लिए अखिल भारतीय आधार पर समान रूप से 3400 रुपए/मी.टन की दर से उर्वरक विभाग द्वारा घोषित किया गया और एसएसपी पर राजसहायता का निर्धारण लागत लेखाशाखा से प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर, उर्वरक विभाग द्वारा मासिक आधार पर किया जाता था। एसएसपी की एमआरपी 1.10.2009 से 30.4.2010 तक खुली छोड़ दी गई और एसएसपी पर 2000 रूपए प्रति मी.टन की नियत राजसहायता दी गई।
3. रियायत स्कीम के अन्तर्गत पीएंडके उर्वरक राजसहायता की संगणना
3.1 पीएंडके उर्वरकों पर राजसहायता की संगणना औद्योगिक लागत और मूल्य ब्यूरो (बीआईसीपी), जिसे अब टैरिफ आयोग (टीसी) कहते हैं, द्वारा डीएपी और एमओपी पर किए गए लागत मूल्य अध्ययन पर आधारित थी। 1.4.1999 से राजसहायता दरें तिमाही आधार पर लागत सह दृष्टिकोण पर निर्धारित की जाती थीं। उर्वरकों की कुल सुपुर्दगी लागत सरकार द्वारा निर्धारित एमआरपी से ऊंची ही रही, फार्म गेट स्तर पर उर्वरकों की सुपुर्दगी मूल्य और एमआरपी के बीच के अंतर की क्षतिपूर्ति सरकार द्वारा राजसहायता के रूप में की जाती थी।
3.2 मिश्रित उर्वरकों पर राजसहायता की गणना के लिए सरकार ने 1.4.2002 से टीसी की सिफारिश पर नई प्रणाली लागू की। मिश्रित उर्वरक निर्माताओं को नाइट्रोजन यानी गैस और नेफ्था, फीड स्टाक के आधार पर दो वर्गों में बांटा गया। कुछ समय बाद, डीएपी उद्योग ने फास्फोटयुक्त अम्ल उत्पादन के लिए रॉक फास्फेट जैसे भिन्न कच्चे माल का प्रयोग करना शुरू कर दिया। डीओएफ ने एक प्रस्ताव बनाया और सुझाव दिया कि फास्फोरिक अम्ल मूल्य को अन्तर्राष्ट्रीय डीएपी मूल्य से सम्बद्ध कर दिया जाए। मामले को प्रो. अभिजीत सेन की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ ग्रुप को भेज दिया गया। इस ग्रुप की रिपोर्ट अक्तूबर, 2005 में प्रस्तुत की गई और उस पर अन्तर-मंत्रालयीन ग्रुप द्वारा विचार किया गया। टीसी ने डीएपी/एमओपी और एनपीके मिश्रित का नए सिरे से लागत मूल्य अध्ययन कराया और दिसम्बर, 2007 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस टीसी रिपोर्ट के आधार पर 31.3.2010 तक राजसहायता का आकलन मासिक आधार पर किया जाता था।
4. रियायती योजना के अंतर्गत पीएण्डके उर्वरकों की एमआरपी
सरकार द्वारा एमआरपी को 1.4.1997 से नियत किया गया था और सरकार द्वारा 1997 से 31.3.2010 के दौरान नियत की गई एमआरपी का उल्लेख निम्नलिखत सारणी में किया गया है:-
पीएण्डके उर्वरकों का अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) (रुपए में प्रति मी.टन) |
|||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|
# |
उर्वरक ग्रेड |
1.4.97 |
29.2.00 |
28.2.02 |
28.2.03 |
12.3.03 |
18.6.08 |
28.2.00 |
27.2.02 |
27.2.03 |
11.3.03 |
17.6.08 |
31.3.10 |
||
1 |
डीएपी : 18-46-0-0 |
8300 |
8900 |
9350 |
9550 |
9350 |
9350 |
2 |
एमएपी : 11-52-0-0 |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
9350 |
3 |
टीएसपी : 0-46-0-0 |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
7460 |
4 |
एमओपी : 0-0-60-0 |
3700 |
4255 |
4455 |
4455 |
4455 |
4455 |
5 |
16-20-0-13 |
6400 |
6740 |
7100 |
7300 |
7100 |
5875 |
6 |
20–20–0-13 |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
6295 |
7 |
23–23–0-0 |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
6145 |
8 |
10–26–26-0 |
7300 |
7880 |
8360 |
8560 |
8360 |
7197 |
9 |
12–32–16-0 |
7400 |
7960 |
8480 |
8680 |
8480 |
7637 |
10 |
14–28–14-0 |
7300 |
7820 |
8300 |
8500 |
8300 |
7050 |
11 |
14–35–14-0 |
7500 |
8100 |
8660 |
8860 |
8660 |
8185 |
12 |
15–15–15-0 |
6000 |
6620 |
6980 |
7180 |
6980 |
0 |
13 |
एएस : 20.3-0-0-23 |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
10350 |
14 |
20-20-0-0 |
6500 |
6880 |
7280 |
7480 |
7280 |
5343 |
15 |
28–28–0-0 |
8000 |
8520 |
9080 |
9280 |
9080 |
7481 |
16 |
17–17–17-0 |
7200 |
7680 |
8100 |
8300 |
8100 |
5804 |
17 |
19–19–19-0 |
7300 |
7840 |
8300 |
8500 |
8300 |
6487 |
18 |
एसएसपी(0-16-0-11) |
अप्रैल, 2008 तक एमआरपी का नियतन संबंधित राज्य सरकारों द्वारा किया गया था। 1.5.2008 से 30.09;2009 तक अखिल भारतीय एमआरपी 3400 पीएमटी सरकार द्वारा नियत की गई थी। 1;10;2009 से अप्रैल, 2010 तक एसएपी इकाइयों को एमआरपी नियतन की छूट थी। |
5 रियायत योजना का प्रभाव:
5.1 पीएण्डके उर्वरकों का एमआरपी सुपुर्दगी लागत से काफी कम था। इसके पिछले तीन दशकों के दौरान उर्वरकों की खपत बढ़ी और परिणामस्वरूप देश में खाद्यान्न उत्पादन भी बढ़ा। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में देखा गया कि देश के अतिरिक्त उर्वरक उपयोग से कृषि उत्पादकता में मामूली सा फर्क पड़ा जिससे कृषि उत्पादकता और परिणामी कृषि उत्पादन में लगभग स्थिरता आ गई। असंगत एनपीके उपयोग से बहु-पोषकतत्वों की कमी में बढ़ोतरी हुई और जैविक खाद के उपयोग में कमी के कारण मृदा कार्बन घटक में कमी आई जिससे कृषि उत्पादकता में स्थिरता आ गई। उर्वरक क्षेत्र ने काफी नियंत्रित वातावरण में काम किया जहां उत्पादन लागत और बिक्री मूल्य भारत सरकार द्वारा निर्धारित किए जाते थे। इस कारण अन्य क्षेत्रों की तुलना में उर्वरक उद्योग को कम लाभ प्रदता का सामना करना पड़ा। पिछले 11 वर्षों से यूरिया क्षेत्र में और लगभग आठ वर्षों से पीएण्डके क्षेत्र में निवेश न होने के कारण उर्वरक उद्योग के विकास में स्थिरता आ गई। आधुनिकीकरण और दक्षता बढ़ाने के लिए उर्वरक उद्योग को कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता। उर्वरक क्षेत्र में नए उत्पाद भी प्रभावित हुए क्योंकि राजसहायता प्राप्त उर्वरकों से मूल्य के कारण पिछड़ने से उर्वरक कंपनियों द्वारा बहुत कम उत्पाद शुरू किए गए। उद्योग को खराब कृषि विस्तार सेवाओं जो कि किसानों को आधुनिक उर्वरक उपयोग तकनीकों मृदा स्वास्थ्य के बारे में शिक्षित करने और मृदा एवं फसल विशिष्ट उर्वरकों के मृदा परीक्षण के आधार पर उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए आवश्यक थी, के कारण किसानों पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए बढ़ावा नहीं मिला।
5.2 रियायत योजना के तहत पिछले पांच वर्षों (2005-06 से 2009-10) के दौरान सरकार के राजसहायता व्यय में 500% की वृद्धि भी हुई जिसमें लगभग 94% वृद्धि उर्वरक एवं उर्वरक आदानों के अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों में वृद्धि के कारण और केवल 6% वृद्धि खपत में बढ़ोतरी के कारण हुई।
5.3 इस प्रकार यह पाया गया कि पिछले कुछ वर्षों से उत्पाद आधारित राजसहायता व्यवस्था (पूर्व रियायत योजना) सभी पणधारियों यथा किसानों, उद्योग और सरकार के लिए घाटे का सौदा रही। तदनुसार कृषि उत्पादकता, संतुलित उर्वरण और स्वदेशी उर्वरक उद्योग की वृद्धि, उर्वरक कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा और रियातय योजना की कमियों से निपटने से संबंधित सभी मुद्दें पर विचार करने के बाद सरकार ने 1.4.2010 से पीएण्डके उर्वरकों के लिए पोषक तत्व आधारित राजसहायता (एनबीएस) नीति शुरू की।
6. पोषक तत्व आधारित राजसहायता (एनबीएस) नीति (1.4.2010 से लागू):
6.1 विभाग 1.4.2010 से पीएण्डके उर्वरकों के लिए एनबीएस नीति कार्यान्वित कर रहा है। एनबीएस नीति के तहत सरकार ने पोषक तत्वों नामत: नाइट्रोजन (एन), फास्फेट (पी), पोटाश (के) और सल्फर (एस) के लिए वार्षिक आधार पर राजसहायता (रुपये प्रति किग्रा आधार पर) की नियत दर घोषित की एनबीएस नीति की। मुख्य विशेषताएं निम्न प्रकार हैं:
6.2 वर्ष 2010-11 से 2014-15 के दौरान सरकार द्वारा घोषित पीएण्डके उर्वरकों के विभिन्न ग्रेड पर प्रति किग्रा एनबीएस दर और प्रति मीट्रिक टन राजसहायता निम्न प्रकार है:
2010-11 से 2014-15 के लिए पोषक तत्वों एनपीकेएस के लिए प्रति किग्रा. एनबीएस दरें (रुपये प्रति किग्रा. में) |
||||||
---|---|---|---|---|---|---|
पोषक तत्व |
1st अप्रैल - 31st दिसम्बर 2010 * |
1st जनवरी- 31st मार्च 2011** |
2011-12 |
2012-13 |
2013-14 |
2014-15 |
‘एन’ (नाइट्रोजन) |
23.227 |
23.227 |
27.153 |
24.000 |
20.875 |
20.875 |
‘पी’ (फॉस्फेट) |
26.276 |
25.624 |
32.338 |
21.804 |
18.679 |
18.679 |
‘के’ (पोटाश) |
24.487 |
23.987 |
26.756 |
24.000 |
18.833 |
15.500 |
‘एस’ (सल्फर) |
1.784 |
1.784 |
1.677 |
1.677 |
1.677 |
1.677 |
* रैक बिंदु से खुदरा बिंदुओं तक द्वितीयक मालभाडे के लिए 300 रुपये प्रति मी.टन सहित
** 300 रुपये/प्रति मी.टन के द्वितीयक मालभाडे को छोड़कर, जो प्रति टन कि.मी. आधार पर अलग से दिया जा रहा है।
वर्ष 2010-11 से 2014-15 के दौरान पीएण्डके उर्वरकों के विभिन्न ग्रेड पर प्रति मी.टन राजसहायता (रुपये प्रति मी.टन में) |
|||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|
क्रम सं |
उर्वरक ग्रेड (एफजी) (एनपीकेएस पोषक तत्व) |
2010-11 |
2011-12 |
2012-13 |
|
|
|
1.4.2010 से 31.12.2010 तक |
1.1.2011 से 31.3.2011 तक |
2013-14 |
2014-15
|
||||
|
डीएपी (18-46-0-0) |
16268 |
15968 |
19763 |
14350 |
12350 |
12350 |
2. |
एमएपी (11-52-0-0) |
16219 |
15897 |
19803 |
13978 |
12009 |
12009 |
3. |
टीएसपी (0-46-0-0) |
12087 |
11787 |
14875 |
10030 |
8592 |
8592 |
4. |
एमओपी (0-0-60-0) |
14692 |
14392 |
16054 |
14400 |
11300 |
9300 |
5. |
एसएसपी (0-16-0-11) |
4400 |
4296+200 |
5359 |
3676 |
3173 |
3173 |
6. |
16-20-0-13 |
9203 |
9073 |
11030 |
8419 |
7294 |
7294 |
7. |
20-20-0-13 |
10133 |
10002 |
12116 |
9379 |
8129 |
8129 |
8. |
20-20-0-0 |
9901 |
9770 |
11898 |
9161 |
7911 |
7911 |
9. |
28-28-0-0 |
13861 |
11678 |
16657 |
12825 |
11075 |
11075 |
10. |
10-26-26-0 |
15521 |
15222 |
18080 |
14309 |
11841 |
10974 |
11. |
12-32-16-0 |
15114 |
14825 |
17887 |
13697 |
11496 |
10962 |
12. |
14-28-14-0 |
14037 |
13785 |
16602 |
12825 |
10789 |
10323 |
13. |
14-35-14-0 |
15877 |
15578 |
18866 |
14351 |
12097 |
11630 |
14. |
15-15-15-0 |
11099 |
10926 |
12937 |
10471 |
8758 |
8258 |
15. |
17-17-17-0 |
12578 |
12383 |
14662 |
11867 |
9926 |
9359 |
16. |
19-19-19-0 |
14058 |
13839 |
16387 |
13263 |
11094 |
10460 |
17. |
अमोनियम सल्फेट (20.6-0-0-23) |
5195 |
5195 |
5979 |
5330
|
4686 |
4686 |
18. |
16-16-16-0 (1.7.2010 से) |
11838 |
11654 |
13800 |
11169 |
9342 |
8809 |
19. |
15-15-15-9 ( 1.10.2010 से) |
11259 |
11086 |
13088 |
10622 |
8909 |
8409 |
20. |
24-24-0-0 (1.10.10 से 29.5.12 तक और 22.6.2012 से) |
11881 |
11724 |
14278 |
10993 |
9493 |
9493 |
21. |
डीएपी लाइट (16-44-0-0) (1.2.11से) |
लागू नहीं |
14991 |
18573 |
13434 |
11559 |
11559 |
22. |
24-24-0-8 (12.11.13 से 14.2.15) सल्फर पर राजसहायता के बिना |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
9493 |
9493 |
23. |
23-23-0-0 (22.6.2012 तक) |
11386 |
11236 |
13686 |
10535 |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
24. |
डीपीए 4 सल्फर 25.2.13 से 7.11.13तक) (राजसहायता के बिना). |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
14350 |
12350 |
लागू नहीं |
25. |
डीएपी लाइट-II(14-46-0-0) 30.8.2011 से 29.8.2012 तक) |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
18677 |
13390 |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
26. |
एमएपी लाइट (11-44-0-0) 30.8.2011 से 29.8.2012 तक) |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
17276 |
12234 |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
27. |
13-33-0-6 30.8.2011 से 29.8.2012 तक) |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
14302 |
10416 |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
एनए का तात्पर्य राजसहायता व्यवस्था के तहत शामिल नहीं किया गया।
6.3 नेफ्था आधारित एनपीके मिश्रित उर्वरक विनिर्माण इकाइयों के लिए अतिरिक्त क्षतिपूर्ति:
एनबीएस नीति के तहत, ‘एन’ के उत्पादन की उच्च लागत की क्षतिपूर्ति के लिए नेफ्था आधारित केप्टिव अमोनिया का उपयोग करते हुए मिश्रित उर्वरकों का उत्पादन करने वाले स्वदेशी विनिर्माताओं जैसे मैसर्स फैक्ट, मैसर्स एमएफएल और मैसर्स जीएनवीएफसी को अधिकतम दो वर्षों (31.3.2012 तक) की अधिकतम अवधि के लिए अलग से अतिरिक्त राजसहायता उपलब्ध कराई जा रही है जिस दौरान इकाइयों के लिए गैस में परिवर्तित करना या फीडस्टॉक के रूप में आयातित अमोनिया का उपयोग करना आवश्यक है। प्रशुल्क आयोग के अध्ययन और संस्तुतियों के आधार पर उर्वरक विभाग, व्यय विभाग के परामर्श से, अतिरिक्त राजसहायता की मात्रा को अंतिम रूप दिया जाएगा। उपर्युक्त अतिरिक्त क्षतिपूर्ति को केवल मैसर्स फैक्ट के लिए 31.03.2012 से 4.10.2013 तक बढ़ाया गया है और मैसर्स एमएफएल एवं जीएनएफवीसी के लिए 31.3.2012 के बाद अतिरिक्त क्षतिपूर्ति बढ़ाने का प्रस्ताव विभाग के विचाराधीन है। प्रशुल्क आयोग की रिपोर्ट को अंतिम रूप दिए जाने तक, विभाग ने मैसर्स फैक्ट, मैसर्स जीएनवीएफसी और मैसर्स एमएफएल के लिए अतिरिक्त क्षतिपूर्ति की तदर्थ दरें घोषित कर दी है जो निम्न प्रकार है:-
कंपनी |
उर्वरक उत्पाद |
तदर्थ अतिरिक्त क्षतिपूर्ति की राशि अनंतिम (रुपये प्रति मी.टन में)
|
||
---|---|---|---|---|
पूर्ववर्ती (संदर्भ दिनांक 22.10.2010 का परिपत्र) |
29.4.2011 को संशोधित( 1.4.2010 से) |
16.1.2014 को फिर से संशोधित (1.4.2012 से 4.10.2013 तक) |
||
फैक्ट, कोचीन |
20-20-0-13 एस |
2331 |
3121 |
5268 |
अमोनियम सल्फेट (20.6-0-023) |
2792 |
3658 |
6343 |
|
एमएफएल, मनाली |
20-20-0-13S |
4784 |
5434 |
विचाराधीन |
17-17-17-0 |
4079 |
4640 |
||
जीएनवीएफसी, भरूच |
20-20-0-0 |
1914 |
2534 |
6.4 एनबीएस व्यवस्था के तहत पीएण्डके उर्वरकों का मूल्य (एमआरपी) :
हमारा देश तैयार उत्पाद या कच्ची सामग्री के लिए पोटाशयुक्त क्षेत्र में आयात पर पूरी तरह और फास्फेट क्षेत्र में आयात पर 90% तक निर्भर है। राजसहायता नियत होने के कारण, अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों में किसी उतार चढ़ाव का प्रभाव, पीएण्डके उर्वरकों के घरेलू मूल्यों पर पड़ता है।
वर्ष 2010-11 से 2013-14 के दौरान पीएण्डके उर्वरकों के एमआरपी को दर्शाने वाला विवरण अनुलग्नक-1 में है।
6.5 एमआरपी का औचित्य:
एनबीएस नीति के तहत कंपनियों को स्वयं एमआरपी नियत करने की अनुमति दी गई है। एनबीएस शुरू करने के पीछे उर्वरक कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ाने का इरादा था ताकि उचित मूल्यों पर बाजार में विभिन्न उत्पादों की उपलब्धता हो सके। तथापि, पीएण्डके उर्वरकों के मूल्यों में अत्याधिक वृद्धि हुई है और कंपनियों द्वारा नियत किए जा रहे मूल्यों की औचित्यता पर संदेह पैदा हुआ है। मूल्यों में भारी वृद्धि अतंर्राष्ट्रीय बाजार में कच्ची सामग्री/तैयार उर्वरकों के मूल्यों में वृद्धि, अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपए का अवमूल्यन और संभवत: कंपनियों द्वारा अधिक लाभ मार्जिन रखने के कारण भी हुई है। इससे विभिन्न क्षेत्रों से आवाजें उठी हैं और इसके कारण उर्वरकों का असंतुलित प्रयोग भी हुआ है। तदनुसार, उर्वरक कंपनियों द्वारा नियत मूल्यों को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने 08.07.2011 की अधिसूचना के जरिए उर्वरक कंपनियों को एनबीएस व्यवस्था के अंतर्गत उचित स्तर पर पीएण्डके उर्वरकों के मूल्य नियत करने का निदेश दिया है।
6.5.1 तदनुसार, पीएण्डके उर्वरकों के मूल्यों के औचित्य को सुनिश्चित करने के लिए एनबीएस नीति और दरें घोषित करते समय एनबीएस नीति में 1.4.2012 से निम्नलिखित खण्ड जोड़े गए हैं:
(i) सभी उर्वरक कंपनियों के लिए यह अनिवार्य होगा कि वे अपने राजसहायता दावों के साथ विहित प्रपत्र में और उर्वरक कंपनियों द्वारा नियत पीएण्डके उर्वरकों के एमआरपी की निगरानी के उद्देश्य हेतु आवश्यकता के अनुसार प्रमाणित लागत आंकड़े प्रस्तुत करें।
(ii) ऐसे मामलों, जहां जांच के बाद एमआरपी की अनुपयुक्तता सिद्ध हो जाती है और जहां उत्पादन या अर्जन की लागत तथा बैगों पर मुद्रित एमआरपी के बीच कोई परस्पर संबंध नहीं होता, वहां राजसहायता को प्रतिबंधित या देने से मना किया जा सकता है भले ही उत्पाद अन्यथा एनबीएस योजना के अंतर्गत राजसहायता के लिए पात्र हों। राजसहायता तन्त्र के दुरूपयोग के प्रमाणित मामले में उर्वरक विभाग आईएमसी की सिफारिश पर किसी भी विशेष कंपनी के उर्वरको के किसी ग्रेड या ग्रेडों को उर्वरक कंपनी भी एनबीएस योजना के बाहर कर सकता है।
(iii) एमआरपी की औचित्यता का निर्धारण बैगों पर मुद्रित एमआरपी के संदर्भ के साथ किया जाएगा।
(iv) कंपनियों को समय-समय पर उर्वरक विभाग की आवश्यकता और निदेश के अनुसार प्रमाणित लागत आंकड़े प्रस्तुत करने होगें। कंपनियों उर्वरक विभाग को नियमित रूप से पीएण्डके उर्वरकों के एमआरपी भी सूचित करेंगे।
(V) पीएण्डके कंपनियों को बैगों पर वही एमआरपी मुद्रित करनी चाहिए जो एफएमएएस में प्रत्येक राज्य में लागू हो। दूसरे शब्दों में, उर्वरक बैगों पर मुद्रित और विशिष्ट राज्य के लिए एफएमएस में सूचित एमआरपी में कोई अन्तर नहीं होना चाहिए।
(vi) किसी माह विशेष के लिए ‘लेखागत’ दावे करते समय उर्वरक कंपनियों को एफएमएस में प्रविष्ट अपने उत्पाद की एमआरपी की सही होने को प्रमाणित करना होगा और बिल प्रस्तुत करना होगा और बिल प्रस्तुत करने की तारीख तक एफएमएस में एमआरपी अद्यतन भी सुनिश्चित करना है।
6.6 पीएण्डके उर्वरकों के एमआरपी की निगरानी:
उर्वरक कंपनियों द्वारा नियत पीएण्डके उर्वरकों के मूल्य की निगरानी के उद्देश्य से उन्हें छमाही आधार पर 2012-13 से, एनबीएस योजना के तहत पीएण्डके उर्वरकों के लागत आंकड़ें प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है। पीएण्डके उर्वरकों के वास्तविक फार्म गेट मूल्यों को इकट्टठे करने के उद्देश्य से विभाग, उपभोक्ता मामले विभाग और अन्य संबंधित संगठनों के परामर्श से एक तंत्र विकसित कर रहा है।
6.7 एनबीएस व्यवस्था के तहत पीएंडके उर्वरकों पर भाड़ा राजसहायता नीति:
(क) 1.4.2010 से 31.12.2010 तक एनबीएस नीति के तहत राजसहायता प्राप्त पीएंडके उर्वरकों (एसएसपी को छोड़कर) के वितरण/संचलन के लिए भाड़ा राजसहायता रेल भाड़े तक सीमित थी द्वितीयक भाड़ा (रेक बिंदु से जिला स्थल तक) नियत राजसहायता का भाग माना जाता था। सीधे सड़क संचलन के कारण भाड़ा प्रतिपूर्ति वास्तविक दावों के अनुसार अदा की जाती थी बशर्ते कि यह अधिकतम 500 कि.मी. तक के रेल भाड़े के बराबर हो।
(ख) 1.11.2011 से 31.3.2012 तक, सभी पीएंडके उर्वरकों (एसएसपी को छोड़कर) के प्रारंभिक संचलन (संयंत्र या बन्दरगाह से रेल द्वारा विभिन्न रेक बिंदुओं तक) तथा द्वितीयक संचलन (नजदीकी रेक बिंदुओं से सड़क द्वारा जिलों के ब्लॉक मुख्यालयों तक) के कारण भाड़े की प्रतिपूर्ति उस अवधि के दौरान लागू एक समान भाड़ा राजसहायता नीति के अनुसार अदा की जाती थी। सभी पीएंडके उर्वरकों (एसएसपी को छोड़कर) के सीधे सड़क संचलन के लिए (संयंत्र या बंदरगाह से ब्लॉक तक सड़क द्वारा) भाड़ा राजसहायताकी वास्तविक दावों के अनुसार प्रतिपूर्ति की जाती थी जो कि अधिकतम 500 कि.मी. के रेल भाड़े के बराबर थी। 1.4.2010 से 31.3.2012 तक सीधे सड़क संचलन के लिए भाड़े की प्रतिपूर्ति हेतु दरें निम्न प्रकार थीं :-
संचलन (किमी.) |
दरें रु./मी.टन |
---|---|
100 तक |
108 |
101-200 |
183 |
201-300 |
256 |
301-400 |
327 |
401-500 |
400 |
(ग) 1.4.2012 से पीएंडके उर्वरकों के लिए भाड़ा राजसहायता निम्न प्रकार है-
(i) सभी पीएंडके उर्वरकों (एसएसपी को छोड़कर) प्रारंभिक संचलन के कारण भाड़े की प्रतिपूर्ति रेल रसीद के अनुसार वास्तविक रेल भाड़े के आधार पर की जाती है।
(ii) सभी पीएंडके उर्वरकों (एसएसपी को छोड़कर) की द्वितीयक संचलन के कारण प्रतिपूर्ति नहीं की जाती है।
(iii) सभी पीएंडके उर्वरकों (एसएसपी को छोड़कर) के सीधे सड़क संचलन के लिए भाड़ा राजसहायता वास्तविक दावों के अनुसार प्रतिपूर्ति की जाती है जो कि उर्वरक विभाग द्वारा समय-समय पर जारी समकक्ष रेल भाड़े के अधीन है। तथापि, सीधे सड़क संचलन के तहत अधिकतम अनुमत्य दूरी 500 कि.मी. होगी।
(iv) सभी पीएंडके उर्वरकों (एसएसपी को छोड़कर) के लिए द्वितीयक संचलन के कारण विशेष क्षतिपूर्ति दुर्गम क्षेत्रों नामत: हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम, जम्मू और कश्मीर, 7 पूर्वोत्तर राज्य तथा अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के लिए प्रदान की जाती है।
6.8 एनबीएस के तहत राजसहायता की अदायगी की पद्धति:
(क) एसएसपी के अलावा पीएण्डके उर्वरक: उर्वरक कंपनियों के राजसहायता दावों का 85% (बैंक गांरटी सहित 90%) कम्पनी के सांविधिक लेखा-परीक्षक के प्रमाणीकरण पर जिले में उर्वरक की प्राप्ति पर ‘लेखागत’ भुगतान के रूप में अदा किया जाता है। एम-एफएमएस में राज्य सरकार द्वारा मात्रा के प्रमाणीकरण और मोबाईल उर्वरक निगरानी पद्धति (एम-एफएसएस) के जरिए खुदरा वितरकों द्वारा उर्वरक प्राप्ति सुनिश्चित करने पर शेष 15-10% की निर्मुक्ति की जाती है।
(ख) एसएसपी: राजसहायता के दावों का 85% (बैंक गारंटी सहित 90%) कम्पनी के सांविधिक लेखा परीक्षक के प्रमाणीकरण पर जिले में उर्वरकों की पहले केन्द्र पर बिक्री पर ‘लेखागत’ भुगतान के रूप में अदा किया जाता है। शेष 10-15% दावों को राज्य सरकार द्वारा एमएफएमएस में मात्रा एवं गुणवत्ता को प्रमाणित करने और साथ ही खुदरा डीलरों द्वारा एम-एफएमएस के जरिए उर्वरक प्राप्ति सुनिश्चित करने पर जारी किया जाता है।
7. एसएसपी के लिए रियायत योजना/पोषक-तत्व आधारित राजसहायता
पीएण्डके उर्वरकों के नियंत्रणमुक्त होने के बाद एसएसपी के लिए रियायत योजना को 1993-94 से लागू किया गया था जो 30.4.2008 तक तदर्थ आधार पर रियायत हेतु जारी रही। रियायत योजना के प्रशासन के कार्य का कृषि और सहकारिता विभाग से उर्वरक विभाग में अक्तूबर 2000 से अंतरण होने के बाद उर्वरक विभाग ने दिशा-निर्देशों में संशोधन किया था। तदनुसार, पीडीआईएल के तत्वावधान में एक तकनीकी औडिट और निरीक्षण प्रकोष्ठ (टीएसी) का गठन दिनांक 17.5.2001 के दिशानिर्देशों द्वारा किया गया था। रियायत के भुगतान का दावा करने के लिए एसएसपी के उत्पादकों को रॉक फॉस्फेट के केवल उन्हीं ग्रेडों का प्रयोग करना होता है, जिन्हें उर्वरक विभाग द्वारा समय-समय पर अधिसूचित किया गया है। एसएसपी की सभी नई उत्पादक इकाइयों को, एफसीओ के अंतर्गत निर्धारित मानदण्डों के अनुसार एसएसपी का उत्पादन करने के लिए अपनी तकनीकी दक्षता का पता लगाने के लिए इकाइयों का पहली बार तकनीकी निरीक्षण कराना जरूरी था। तत्पश्चात् इकाइयों को छमाही निरीक्षण भी कराना था ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या इकाइयां रियायत योजना के सिद्धांतों के अनुसार कार्य कर रही हैं।
इकाइयों को रियायत के 85% ‘लेखागत’ भुगतान का दावा करने की अनुमति दी गई थी जिसे बाद में निर्धारित प्रपत्र ‘ख’ में राज्य सरकारों द्वारा जारी बिक्री प्रमाण-पत्र के आधार पर उर्वरक विभाग द्वारा तय किया जाता है। यह प्रक्रिया आज की तारीख तक जारी रखने की अनुमति दी गई है यद्यपि एसएसपी के लिए अन्य नीतिगत मानदण्डों को समय-समय पर परिवर्तित किया गया है।
सरकार ने दिनांक 25.8.2008 की अधिसूचना के जरिए 1.5.2008 से एसएसपी की रियायत योजना में संशोधन किया जो 30.9.2009 तक जारी रही। इस नीति के अनुसार उर्वरक विभाग ने प्रत्येक राज्य द्वारा एमआरपी दर्शाने की पिछली प्रणाली के स्थान पर संपूर्ण भारत में 3400 रुपए प्रति मी.टन की एमआरपी की घोषणा की। दिनांक 28.8.2008 की नीति के अनुसार आयातित रॉक फॉस्फेट तथा स्वदेशी रॉक फॉस्फेट आधार पर एसएसपी के लिए अलग से माह-वार रियायत दरों की घोषणा की गई थी। रॉक फास्फेट, सल्फर की कच्ची सामग्रियों के मूल्यों तथा विनिमय दर के समय-समय पर बढ़ने/घटने के आधार पर रियायत बढ़ाई/घटाई गई थी। एसएसपी की गुणता सुनिश्चित करने की दृष्टि से, एसएसपी उत्पादकों उन राज्य सरकारों द्वारा जारी गुणता प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना अपेक्षित है, जहां पर उनकी इकाइयां स्थापित है। इकाइयों से अपेक्षित है कि वे एसएसपी के प्रत्येक बैग पर ‘गुणता प्रमाणित लिखें/मुद्रित कराएं।
तत्पश्चात् उर्वरक विभाग ने 13.8.2009 की अधिसूचना द्वारा नीति में पुन: संशोधन करने की घोषणा की थी जो 1.10.2009 से लागू हुई और 30.4.2010 तक जारी रही। इस नीति के अनुसार, सरकार ने अखिल भारत आधार पर 3400 रुपए प्रति मी.टन की पिछली एमआरपी की बजाए 1.10.2009 से एसएसपी के बिक्री मूल्य को खुला रखने का निर्णय लिया था। सरकार ने पाउडर्ड, दानेदार और बोरोनयुक्त एसएसपी के लिए 2000 रुपए प्रति मी.टन के हिसाब से तदर्थ रियायत उपलब्ध कराई है। केवल उन्हीं एसएसपी उत्पादकों को राजसहायता का दावा करने की अनुमति दी गई थी, जिन्होंने वार्षिक स्थापित क्षमता का 50% या 40,000 मी.टन प्रति वर्ष का उत्पादन किया है। रियायत की ‘लेखागत’ तथा बकाया भुगतान जारी करने की प्रणाली पहले की ही तरह जारी रही। इसके अलावा, पोषक-तत्व आधारित राजसहायता नीति में 1.5.2010 से एसएसपी को भी शामिल किया गया है।
वर्ष 1993-94 से 2014-15 के दौरान राजसहायता की दर और एसएसपी की एमआरपी निम्नलिखित प्रकार है:-
अवधि |
राजसहायता की दर |
एमआरपी (रुपये प्रति मी.टन) |
---|---|---|
रियायत योजना के तहत |
||
1993-94 से 2007-08 |
राजसहायता की भिन्न राशि |
30.4.2008 तक, संबंधित राज्य सरकारों द्वारा अपने राज्य में एसएसपी की बिक्री के लिए एमआरपी नियत की जाती थी। |
2008-09 (1.5.2008 से 30.9.2009) |
भारत सरकार द्वारा घोषित माह-वार राजसहायता जैसा कि नीचे सारणी-क में उल्लिखित है। |
1.5.2008 से 30.9.2009, तक 3400 रुपये प्रति मी.टन अखिल भारतीय एमआरपी |
2009-10 (1.10.2009 से 30.4.2010) |
रुपये. 2000 पीएमटी |
1.10.2009 से 30.4.2010, तक खुली एमआरपी। |
एनबीएस योजना के तहत |
||
---|---|---|
मई 2010 से दिसंबर 2010 |
4400 |
समझौता ज्ञापन के अनुसार नियंत्रण के तहत एमआरपी (3200 रुपये प्रति मी.टन) |
जनवरी. 2011 से मार्च 2011 |
4296+रुपए. 200 भाड़ा |
|
अप्रैल 2011 से मार्च 2012 |
5359 |
3.5.2011 से खुली एमआरपी |
अप्रैल 2012 से मार्च 2013 |
3673 |
खुली एमआरपी |
अप्रैल 2013 से मार्च 2014 |
3173 |
खुली एमआरपी |
अप्रैल 2014 से मार्च 2015 |
3173 |
खुली एमआरपी |
सारणी क
एसएसपी हेतु रियायत योजना के तहत मई 2008 से सितम्बर 2009 तक की अवधि के लिए एसएसपी हेतु रियायत दर (नीति अधिसूचना सं.22011/4/2007-एमपीआर दिनांक 25.08.2008 लागत लेखा शाखा 2004 की रिपोर्ट पर आधारित थी) (अखिल भारतीय एमआरपी 3400/- रुपये प्रति मी.टन नियत और आयातित और स्वदेशी रॉक के लिए लागू माह-वार रियायत)
माह/वर्ष |
आयातित रॉक फास्फेट पर आधारित रियायत दर (रुपये.प्रति मी.टन) |
स्वदेशी आयातित रॉक फास्फेट पर आधारित रियायत दर (रुपये.प्रति मी.टन) |
---|---|---|
मई, 2008 |
6406 |
4587 |
जून, 2008 |
8942 |
5383 |
जुलाई, 2008 |
9160 |
5674 |
अगस्त, 2008 |
10391 |
6776 |
सितंबर, 2008 |
11661 |
6990 |
अक्तूबर, 2008 |
13003 |
5823 |
नवम्बर,2008 |
7914 |
3070 |
दिसम्बर, 2008 |
8965 |
2012 |
जनवरी, 2009 |
8075 |
1967 |
फरवरी, 2009 |
7503 |
1961 |
मार्च, 2009 |
5870 |
1944 |
अप्रैल, 2009 |
2927 |
1873 |
मई, 2009 |
2709 |
2006 |
जून, 2009 |
2453 |
1982 |
जुलाई, 2009 |
2510 |
1986 |
अगस्त 2009 |
1951 |
2331 |
सितंबर 2009 |
2251 |
2295 |
8. उर्वरकों की गुणवत्ता
भारत सरकार ने अनिवार्य वस्तु अधिनियम, 1955 (ईसीए) के अंतर्गत उर्वरक को एक अनिवार्य वस्तु घोषित किया है तथा इस अधिनियम के अंतर्गत उर्वरक नियंत्रण आदेश, 1985 (एफसीओ) अधिसूचित किया है। तदनुसार, राज्य सरकारों की यह जिम्मेदारी है कि वे ईसीए के अंतर्गत एफसीओ में निर्धारित अनुसार उर्वरकों के उत्पादकों/आयातकों द्वारा उर्वरकों की गुणवत्ता की आपूर्ति सुनिश्चित करें। एफसीओ के प्रावधान के अनुसार उर्वरक, जो आदेश में निर्धारित गुणवत्ता के मानक को पूरा करते हैं, को ही किसानों को बेचा जा सकता है। कुल 71 उर्वरक परीक्षण प्रयोगशालाएं हैं जिनमें फरीदाबाद, कल्याणी, मुंबई और चेन्नई में भारत सरकार की चार प्रयोगशालाएं हैं जिनकी वार्षिक विश्लेषण क्षमता 1.34 लाख नमूने हैं। देश में आयातित उर्वरकों की गुणवत्ता की भारत सरकार की उर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालाओं द्वारा निरपवाद रूप से जांच की जाती है।
राज्य सरकारों को देश में कहीं भी उर्वरकों के नमूने लेने और अवमानक उर्वरकों की बिक्री करने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने के लिए पर्याप्त रूप से अधिकार दिए गए हैं। दण्ड प्रावधान में दोषियों पर मुकदमा चलाना और दोषी पाए जाने पर प्राधिकार प्रमाण-पत्र रद्द करने तथा अन्य प्रशासनिक कार्रवाई के अलावा ईसीए 1955 के अंतर्गत सात साल की सजा देना भी शामिल है। उर्वरक विभाग उन उर्वरकों की मात्रा पर दण्डात्मक ब्याज सहित कटौतियां करता है जिनके लिए राज्य सरकारों द्वारा अवमानक उर्वरक होने की सूचना दी जाती है।
विभाग द्वारा पीएण्डके उर्वरकों तथा सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) पर रियायत का भुगतान राज्य में प्राप्त और बेचे गए उर्वरकों हेतु प्रोफार्मा ‘ख’ में संबंधित राज्य सरकारों द्वारा दिए गए गुणवत्ता प्रमाण-पत्र को ध्यान में रखकर किया जाता है। इसके अलावा, एसएसपी इकाइयों को उन राज्यों की राज्य सरकारों द्वारा जारी माह-वार ‘गुणवत्ता प्रमाणपत्र’ प्रस्तुत करने होते हैं जहां ये इकाइयां स्थित होती हैं। इकाइयों में एसएसपी के नमूनों का परीक्षण करने के लिए सुसज्ज्ति प्रयोगशालाएं स्थापित करनी होती हैं। एसएसपी इकाइयों को बाजार में जारी प्रत्येक बैग पर ‘गुणवत्ता प्रमाणित’ भी मुद्रित करना होता है। उर्वरक विभाग, पीडीआईएल को नई एसएसपी इकाइयों का पहली बार तकनीकी निरीक्षण करने के लिए भी नियुक्त करता है। पीडीआईएल उर्वरकों की मात्रा और गुणवत्ता की जांच करने के लिए एसएसपी इकाइयों का छमाही निरीक्षण भी करती है जिसके लिए इकाइयां राजसहायता के भुगतान का दावा कर रही हैं। इकाइयों से एनबीएस के अंतर्गत एसएसपी का उत्पादन करने के लिए आदानों के रूप में रॉक फॉस्फेट के केवल उन ग्रेडों का इस्तेमाल की अपेक्षा होती है, जिन्हें उर्वरक विभाग द्वारा समय-समय पर अधिसूचित किया जाता है। अधिसूचित ग्रेडों को दर्शाने वाला एक विवरण अनुलग्नक-XIII में दिया गया है। उर्वरक विभाग ने राज्य सरकारों को पीडीआईएल के साथ दल का गठन करने के लिए भी कहा है ताकि खुदरा व्यापारी स्तर पर सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) के नमूनों की जांच की जा सके। एसएसपी के विपणनकर्ता उनके द्वारा विपणन किए गए उर्वरकों की गुणवत्ता के लिए भी जिम्मेदार होते हैं। उर्वरक विभाग ने राज्यों में उर्वरकों की उपलब्धता और गुणवत्ता की जांच करने के लिए विभाग के अधिकारियों के सतर्कता दलों का भी गठन किया है।
9. पिछले 10 वर्षों के दौरान पीएण्डके उर्वरकों और यूरिया पर राजसहायता व्यय:
(रुपये करोड में)
वर्ष |
पीएण्डके के उर्वरकों पर राजसहायता
|
पीएण्डके उर्वरकों के लिए राजसहायता व्यवस्था |
यूरिया पर राजसहायता |
यूरिया उर्वरकों के लिए राजसहायता व्यवस्था |
कुल राजसहायता व्यय (पीएण्डके यूरिया) |
---|---|---|---|---|---|
2005-06 |
6596.19 |
रियायत योजना |
12793.45 |
नई मूल्य निर्धारण योजना |
19389.64 |
2006-07 |
10298.12 |
17721.43 |
28019.55 |
||
2007-08 |
16933.80 |
26385.36 |
43319.16 |
||
2008-09 |
65554.79 |
33939.92 |
99494.71 |
||
2009-10 |
39452.06 |
24580.23 |
64032.29 |
||
2010-11 |
41500.00 |
एनबीएस व्यवस्था |
24336.68 |
65836.68 |
|
2011-12 |
36107.94 |
37683.00 |
73790.94 |
||
2012-13 |
30576.10 |
40016.00 |
70592.10 |
||
2013-14 |
29426.86 |
41853.30 |
71280.16 |
||
2014-15 (बीई) |
24670.30 |
47400.00 |
72070.30 |
10. एनबीएस नीति के प्रभाव पर अध्ययन
एनबीएस नीति के कार्यान्वयन में बेहतर परिणाम प्राप्त करने के उद्देश्य से, विभाग ने मैसर्स अर्नस्ट एवं यंग (ईवी) नामक परामर्शदाता फर्म को एनबीएस नीति के प्रभाव का अध्ययन कार्य सौंपा गया है। अध्ययन के प्रमुख केन्द्रित क्षेत्र निम्न प्रकार हैं:
(i) भारत में उर्वरकों के मूल्यों एवं उपलब्धता पर एनबीएस नीति का प्रभाव।
(ii) मृदा के संतुलित उर्वरण पर एनबीएस नीति का प्रभाव और कृषि उत्पादकता पर इसका प्रभाव।
(iii) एमआरपी की ‘औचित्यता’ सुनिश्चित करने के लिए तंत्र।
(iv) एनबीएस नीति के तहत अतिरिक्त तंत्र की पहचान ताकि इसके लक्ष्य प्राप्त करने के लिए इसे अधिक प्रभावशाली बनाया जा सके।
(v) मूल्यों की निगरानी एवं विनियमन।
(vi) मूल्य प्रकटीकरण (प्राइस-डिसकवरी) और मूल्य नियतन।
मैसर्स ईवी से प्राप्त रिपोर्ट को संबंधित मंत्रालयों को टिप्पणियों के लिए भेजा गया है। उर्वरक विभाग संबंधित मंत्रालयों/विभागों और पणधारी कंपनियों से प्राप्त टिप्पणियों की समीक्षा के पश्चात् इस संबंध में उचित कदम उठाएगा।
पोषक तत्व आधारित राजसहायता व्यवस्था के तहत उर्वरक कंपनियों द्वारा नियत पीएण्डके उर्वरकों के उच्चतम अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) रुपये/मी.टन में |
|||||||||||||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
# |
उर्वरकों के ग्रेड |
10-11(तिमाही वार) |
11-12(तिमाही वार) |
2012-13(तिमाही वार) |
2013-14 (तिमाही वार) |
||||||||||||
I |
II |
III |
IV |
I |
II |
III |
IV |
I |
II |
III |
IV |
I |
II |
III |
IV |
||
1 |
डीएपी: 18-46-0-0 |
9950 |
9950 |
9950 |
10750 |
12500 |
18200 |
20297 |
20000 |
24800 |
26500 |
26500 |
26500 |
26520 |
25000 |
24607 |
24607 |
2 |
एमएपी : 11-52-0-0 |
9950 |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
|
18200 |
20000 |
20000 |
20000 |
24200 |
24200 |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
3 |
टीएसपी : 0-46-0-0 |
8057 |
8057 |
8057 |
8057 |
8057 |
8057 |
17000 |
17000 |
17000 |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
17000 |
लागू नहीं |
17000 |
17000 |
लागू नहीं |
4 |
एमओपी : 0-0-60-0 |
5055 |
5055 |
5055 |
5055 |
6064 |
11300 |
12040 |
12040 |
16695 |
23100 |
24000 |
18750 |
18638 |
17750 |
17750 |
17750 |
5 |
16-20-0-13 |
6620 |
6620 |
6620 |
7200 |
9645 |
14400 |
15300 |
15300 |
15300 |
18200 |
18200 |
18200 |
17280 |
17710 |
17510 |
17010 |
6 |
20–20–0-13 |
7280 |
7280 |
7395 |
8095 |
11400 |
14800 |
15800 |
15800 |
19000 |
24800 |
19176 |
24800 |
20490 |
19166 |
23500 |
23500 |
7 |
23–23–0-0 |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
7445 |
7445 |
7445 |
एनबीएस नीति से बाहर। |
|||||||||
8 |
10–26–26-0 |
8197 |
लागू नहीं |
8300 |
10103 |
10910 |
16000 |
16633 |
16386 |
21900 |
22225 |
22225 |
22225 |
22213 |
22200 |
21160 |
21160
|
9 |
12–32–16-0 |
8637 |
8237 |
8637 |
9437 |
11313 |
16400 |
16500 |
16400 |
22300 |
23300 |
22500 |
24000 |
23300 |
23300 |
21475 |
21105 |
10 |
14–28–14-0 |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
|
14950 |
17029 |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
11 |
14–35–14-0 |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
9900 |
11622 |
15148 |
17424 |
17600 |
17600 |
23300 |
23300 |
23300 |
23300 |
23300 |
21810 |
21810 |
12 |
15–15–15-0 |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
7421 |
8200 |
11000 |
11500 |
11500 |
13000 |
15600 |
15600 |
15600 |
15600 |
15150 |
15150 |
15150 |
13 |
एएस: 20.3-0-0-23 |
8600 |
8600 |
7600 |
8700 |
7600 |
11300 |
10306 |
10306 |
11013 |
11013 |
11013 |
11013 |
11106 |
11106 |
11184 |
11689 |
14 |
20-20-0-0 |
5943 |
लागू नहीं |
6243 |
7643 |
9861 |
14000 |
15500 |
18700 |
18700 |
24450 |
24450 |
18500 |
15561 |
15262 |
18000 |
18000 |
15 |
28–28–0-0 |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
11181 |
11810 |
15740 |
18512 |
18700 |
24720 |
24720 |
23905 |
23905 |
23905 |
23410 |
21907 |
21907 |
16 |
17–17–17-0 |
|
|
|
|
|
|
|
17710 |
20427 |
20522 |
20572 |
20672 |
20672 |
22947 |
24013 |
23231 |
17 |
19–19–19-0 |
|
|
|
|
|
|
|
18093 |
19470 |
19470 |
19470 |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
0 |
20915 |
20915 |
18 |
एसएसपी(0-16-0-11)* |
3200 |
3200 |
3200 |
3200 |
3200 |
4000 to 6300 |
6500 to 7500 |
|
|
6200-9900 |
9270 |
10300 |
9270 |
|||
19 |
16-16-16-0 |
|
|
|
7100 |
7100 |
7100 |
15200 |
15200 |
15200 |
|
|
|
|
18000 |
18000 |
17000 |
20 |
डीएपी लाइट (16-44-0-0) |
|
|
|
लागू नहीं |
11760 |
17600 |
19500 |
19500 |
19500 |
24938 |
24938 |
24938 |
24938 |
23875 |
22900 |
22000 |
21 |
15-15-15-09 |
|
|
|
6800 |
9300 |
12900 |
15750 |
14851 |
15000 |
15000 |
15000 |
लागू नहीं |
लागू नहीं |
0 |
|
15670 |
22 |
24-24-0-0 |
|
|
|
7768 |
9000 |
11550 |
14151 |
14297 |
14802 |
16223 |
16223 |
18857 |
18857 |
17896 |
17896 |
17896 |
23 |
13-33-0-6 |
|
|
|
|
|
16200 |
17400 |
17400 |
17400 |
17400 |
17400 |
एनबीएस नीति से बाहर |
||||
24 |
एमएपी लाइट (11-44-0-0) |
|
|
|
|
|
16000 |
18000 |
18000 |
18000 |
21500 |
21500 |
|||||
25 |
डीएपी लाइट-II (14-46-0-0) |
|
|
|
|
|
14900 |
18690 |
18300 |
18300 |
24800 |
24800 |
|||||
एमआरपी से कर शामिल नहीं हैं। |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
क्रम सं 7,23,24,25 पर उल्लिखित उर्वरक ग्रेड वर्तमान में राजसहायता योजनाओं के अंतर्गत नहीं आते हैं। |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
||||||
खाली स्थान/एनए का तात्पर्य बाजार में उपलब्ध नहीं है/राजसहायता योजना के अंतर्गत नहीं है। |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|