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फॉस्फेटिक और पोटैसिक (पी एंड के)

नियंत्रणमुक्‍त फॉस्‍फेटयुक्‍त और पोटाशयुक्‍त उर्वरकों के लिए राजसहायता नीति आधारित रियायत योजना/पोषक-तत्‍व आधारित राजसहायता नीति

भारत सरकार ने संयुक्‍त संसदीय समिति की सिफारिशों पर 25 अगस्‍त, 1992 से फॉस्‍फेटयुक्‍त और पोटाशयुक्‍त (पीएण्‍डके) उर्वरकों को नियंत्रणमुक्‍त कर दिया था। नियंत्रणमुक्‍त किए जाने के कारण बाजार में फॉस्‍फेटयुक्‍त और पोटाशयुक्‍त उर्वरकों के मूल्‍यों में तीव्र वृद्धि दर्ज की गई थी, जिसका उर्वरकों की मांग और खपत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था। इससे एनपी और के (नाइट्रोजन, फॉस्‍फेट और पोटाश) के पोषक-तत्‍वों के उपयोग में असंतुलन पैदा हो गया। पीएण्‍डके उर्वरकों के नियंत्रणमुक्‍त होने पर पड़े प्रतिकूल प्रभाव को देखते हुए कृषि और सहकारिता विभाग ने 1.10.1992 से तदर्थ आधार पर नियंत्रणमुक्‍त फॉस्‍फेटयुक्‍त और पोटाशयुक्‍त (पीएण्‍डके) उर्वरकों की एक रियायत योजना शुरू की है जिसे 31.3.2010 तक भारत सरकार द्वारा जारी रखा गया है जिसमें मानदण्‍डों को समय-समय पर बदला गया है। तत्‍पश्‍चात् सरकार ने नियंत्रणमुक्‍त पीएण्‍डके उर्वरकों की तत्‍कालीन रियायत योजना को जारी रखते हुए 1.4.2010 से (एसएसपी के लिए 1.5.2010 से) पोषक-तत्‍व आधारित राजसहायता नीति लागू की है। रियायत योजना और पोषक-तत्‍व आधारित राजसहायता नीति का मूल उद्देश्‍य किसानों को राजसहायता-प्राप्‍त मूल्‍यों पर उर्वरक उपलब्‍ध कराना है। प्रारम्‍भ में तदर्थ रियायत योजना डीएपी, एमओपी, एनपीके मिश्रित उर्वरकों पर राजसहायता हेतु लागू की गई थी। यह योजना 1993-94 से एसएसपी पर भी लागू की गई थी। कृषि और सहकारिता विभाग द्वारा उपलब्‍ध कराए गए अनुदानों के आधार पर वर्ष 1992-93 और 1993-94 के दौरान राज्‍य सरकारों द्वारा उत्‍पादकों/आयातकों को रियायत वितरित की गई थी। तत्‍पश्‍चात् डीएसी ने 100% आधार पर राज्‍य सरकारों द्वारा जारी बिक्री प्रमाण-पत्रों के आधार पर उर्वरक कंपनियों को रियायत का भुगतान देना प्रारम्‍भ किया था

सरकार ने उर्वरक कंपनियों को वर्ष 1997-98 में माह-वार रियायत का 80% ‘लेखागत’ भुगतान शुरू करने की प्रणाली शुरू की थी, जिसे अंतत: राज्‍य सरकार द्वारा जारी बिक्री प्रमाण-पत्र के आधार पर अंतत: निपटाया गया था। वर्ष 1997-98 के दौरान कृषि और सहकारिता विभाग ने डीएपी/एनपीके/एमओपी के लिए अखिल भारत एकसमान अधिकतम खुदरा मूल्‍य (एमआरपी) भी दर्शाना शुरू कर दिया था। एसएसपी के संबंध में एमआरपी दर्शाने का उत्‍तरदायित्‍व एसएसपी का है। जम्‍मू व कश्‍मीर तथा तथा पूर्वोत्‍तर राज्‍यों के दुर्गम क्षेत्रों में उर्वरकों की आपूर्ति हेतु 1997 में एक विशेष भाड़ा राजसहायता प्रतिपूर्ति योजना शुरू की थी जो 31.3.2008 तक जारी रही। औद्योगिक लागत और मूल्‍य ब्‍यूरों (बीआईसीपी-अब टैरिफ कमीशन कहलाता है) द्वारा आयोजित डीएपी और एमओपी के लागम मूल्‍य अध्‍ययन आधार पर कृषि और सहकारिता विभाग ने 1.4.1999 से तिमाही आधार पर लागत प्‍लस दृष्टिकोण पर आधारित रियायत की दरों की घोषणा करना प्रारम्‍भ किया था। उर्वरकों की कुल सुपुर्दगी लागत के निपरवाद रूप से सरकार द्वारा सूचित एमआरपी से अधिक रहने के कारण फार्मगेट स्‍तर पर उर्वरकों के सुपुर्दगी मूल्‍य तथा एमआरपी में अंतर की प्रतिपूर्ति सरकार द्वारा सूचित एमआरपी पर उर्वरकों को बेचने के लिए उत्‍पादकों/आयातकों को राजसहायता के रूप में सरकार द्वारा की जाती थी।

योजना का प्रशासन कार्य 1.10.2000 से कृषि और सहकारिता विभाग से उर्वरक विभाग को अंतरित किया गया था। सरकार ने टैरिफ कमीशन की सिफारिशों के आधार पर 1.4.2012 से मिश्रित उर्वरकों पर राजसहायता देने के लिए एक नई पद्धति लागू की थी मिश्रित उर्वरकों को नाइट्रोजन के स्रोत जैसे गैस, नेफ्था, आयातित अमोनिया के फीडस्‍टॉक पर आधारित समूहों में विभाजित किया गया था।समय के साथ-साथ, डीएपी उद्योग के ढांचे में बदलाव आया क्‍योंकि कुछेक नए डीएपी उत्‍पादन संयंत्रों की स्‍वदेशी फॉस्‍फोरिक एसिड/डीएपी के लिए रॉक फॉस्‍फेट फॉस्‍फेट का प्रयोग करके स्‍थापना की गई थी। तदनुसार टैरिफ कमीशन ने एक नया लागत मूल्‍य अध्‍ययन किया था और अपनी रिपोर्ट फरवरी, 2003 में प्रस्‍तुत की थी। वर्ष 2003-04 से 2007-08 तक डीएपी उत्‍पादन इकाइयों को रियायत का भुगतान कच्‍ची सामग्रियों (रॉक फॉस्‍फेट/फॉस्‍फोरिक एसिड) के स्रोतो के आधार पर दो समूहों के अनुसार किया बया था। वर्ष 2004-05 में सरकार के निर्णयों के आधार पर उर्वरक विभाग ने अंतर्राष्‍ट्रीय डीएपी मूल्‍यों के साथ फॉस्‍फेारिक एसिड मूल्‍य को लिंक करने की एक प्रणाली का सुझाव देते हुए एक प्रस्‍ताव बनाया था। तत्‍पश्‍चात् मामले को विशेषज्ञ समूह को भेजा गया था। प्रो. अभिजीत सेन की अध्‍यक्षता में एक विशेषज्ञ समूह ने अक्‍तूबर, 2005 को अपनी रिपोर्ट प्रस्‍तुत कर दी थी।

विशेषज्ञ समूह की सिफारिशों पर एक अंतर-मंत्रालय समूह (आईएमजी) द्वारा विचार किया गया था। टेरिफ कमीशन ने डीएपी/एमओपी और एनपीके मिश्रित उर्वरकों का ताजा लागत मूल्‍य अध्‍ययन कराया था और दिसम्‍बर, 2007 में अपनी रिपोर्ट प्रस्‍तुत की थी। टैरिफ कमीशन रिपोर्ट की जांच के आधार पर और प्रो. अभिजीत सेन की अध्‍यक्षता में विशेषज्ञ समूह द्वारा सुझाई गई दीर्घावधि नीति के आधार पर सरकार ने डीएपी/एमओपी/एनपीके मिश्रित उर्वरकों/एमएपी के लिए 1.4.2008 से रियायत योजना, जो कुछ संशोधनों के साथ 31.3.2010 तक जारी रही थी, ने रियायत योजना को अनुमोदित किया था। रियायत की अंतिम दरों को मासिक आधार पर निकाला गया था। स्‍वदेशी डीएपी की रियायत आयातित डीएपी के समान थी (आयात सममूल्‍य आधार पर)। मिश्रित उर्वरकों पर रियायत टैरिफ कमीशन द्वारा कुछ संशोधनों सहित संस्‍तुत पद्धति पर आधारित थी। 

गैस, नेफ्था, आयातित यूरिया-अमोनिया मिश्रण और आयातित अमोनिया की तुलना में नाइट्रोजन के स्रोत के आधार पर एनपीके मिश्रित उद्योग को 4 समूहों में बांटा गया था। दिनांक 1.4.2008 से मिश्रित उर्वरकों सहित सल्‍फर के लिए ‘एस’ की पृथक लागत को 1.4.2008 से स्‍वीकार किया गया था। रियायत योजना इनपुट/उर्वरक मूल्‍यों को बाहरी इकाई की पद्धति के आधार पर निकाला गया था। बफर स्‍टॉकिंग योजना को जारी रखा गया था जिसमें डीएपी 3.5 लाख मी.टन तथा एमओपी 1 लाख मी.टन थी। रियायत योजना के कुछ तत्‍वों में संशोधन 1.4.2009 से किया गया था ताकि रियायत योजना के मापदण्‍डों को अंतर्राष्‍ट्रीय मूल्‍य-निर्धारण के उतार-चढ़ाव को समायोजित किया जा सके और ‘एन’ मूल्‍य-निर्धारण समूह-वार तथा भुगतान प्रणाली को तर्कसंगत बनाया जा सके। पीएण्‍डके उर्वरकों की मौजूदा नीति में ही कुछ परिवर्तन किए गए थे। तदनुसार, 1.4.2009 से रियायत की अंतिम दरों को पिछले माह से पूर्व माह के औसत अंतर्राष्‍ट्रीय मूल्‍यों या वर्तमान माह के लिए भारतीय बंदरगाहों में वास्‍तविक भारित औसत सीएण्‍डएफ उतराई मूल्‍य, डीएपी और एमओपी के संबंध में जो भी कम हो, को ध्‍यान में रखते हुए मासिक आधार पर निर्धारित किए गए हैं। कच्‍ची सामग्रियों/मिश्रित उर्वरकों के आदानों के मामले में यह एक महीना पीछे था। दिनांक 1.12.2008 से रियायत का भुगतान उर्वरकों के पहुंचने/प्राप्ति तथा राज्‍य सरकार द्वारा प्राप्ति के प्रमाण-पत्र/कंपनी के सांविधिक लेखा-परीक्षक के आधार पर नियंत्रणमुक्‍त उर्वरकों (एसएसपी को छोड़कर) के उत्‍पादकों/आयातकों को किया जाता है बशर्ते कि मात्रा की बिक्री के आधार पर अंतिम निपटान कर दिया जाए। 

पीएंडके उर्वरकों की एमआरपी, जिसे सरकार/राज्‍य सरकार द्वारा सूचित किया जाता है, 2002 से 31.3.2010 तक स्थिर रहा है। एनपीके मिश्रित उर्वरकों की एमआरपी को 18.6.2008 से कम किया गया था। उर्वरकों की बॉस्‍केट का विस्‍तार करने के लिए मोनो-अमोनियम फॉस्‍फेट (एमएपी) को 1.4.2007 से रियायत योजना में, ट्रिपल सुपर फॉस्फेट (टीएसपी) को 1.4.2008 से और मैसर्स फैक्‍ट और मैसर्स जीएसपीसी द्वारा उत्‍पादित अमोनियम सल्‍फेट (एएस) को 1.7.2008 से रियायत योजना में शामिल किया गया था।

(क)   नियंत्रणमुक्‍त फॉस्‍फेटयुक्‍त और पोटाशयुक्‍त उर्वरकों के लिए पोषक-तत्‍व आधारित राजसहायता नीति 

रियायत योजना के कार्यान्‍वयन में यह पाया गया है कि पिछले दशक में कोई निवेश नहीं हुआ है। राजसहायता में वृद्धि वर्ष 2004 से 2009 के दौरान 530% बढ़ गई जो उर्वरकों और आदानों के अंतर्राष्‍ट्रीय मूल्‍यों में वृद्धि के कारण लगभग 90% की वृद्धि दर्शाती है। कृषि उत्‍पादकता में राजसहायता बिल में वृद्धि के अनुरूप कोई वृद्धि नहीं हुई थी। उर्वरकों की एमआरपी 2002 के बाद से स्थिर बनी हुई है। उर्वरक व्‍यवस्‍था के सभी पहलुओं पर विचार करने के लिए मंत्रियों के एक समूह (जीओएम) का गठन किया गया था जिसने सिफारिश की कि राजसहायता प्राप्‍त उर्वरकों में पोषक-तत्‍वों के आधार पर पोषक-तत्‍व आधारित राजसहायता (एनबीएस) लागू की जाए। माननीय वित्‍त मंत्री ने अपने बजट भाषण 2009 ने फॉस्‍फेटयुक्‍त और पोटाशयुक्‍त उर्वरकों के लिए पोषक-तत्‍व आधारित राजसहायता नीति लागू करने की घोषणा की थी जिसका उद्देश्‍य राष्‍ट्रीय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना, कृषि उत्‍पादकता में सुधार करना तथा उर्वरकों को संतुलित उपयोग सुनिश्चित करना है। सरकार ने नियंत्रणमुक्‍त पीएण्‍डके उर्वरकों के लिए तत्‍कालीन रियायत योजना के साथ-साथ पोषक-तत्‍व आधारित राजसहायता (एनबीएस) नीति 1.4.2010 लागू की है (एसएसपी के लिए 1.5.2010 से)।

पोषक-तत्‍व आधारित राजसहायता नीति निम्‍न प्रकार है :-  

  • एनबीएस डाई अमोनियम फॉस्‍फेट (डीएपी 18-46-0), म्‍यूरिएट ऑफ पोटाश (एमओपी), मोनो अमोनियम फॉस्‍फेट (एमएपी, 11-52-0), ट्रिपल सुपर फॉस्‍फेट (टीएसपी, 0-46-0), मिश्रित उर्वरकों के 12 ग्रेड तथा अमोनियम सल्‍फेट/एएस-सी जीएसएफसी और फैक्‍ट द्वारा कैप्रोलैक्‍टम गेड) पर लागू है जो 31 मार्च, 2010 तक फॉस्‍फेटयुक्‍त और पोटाशयुक्‍त (पीएण्‍डके) उर्वरकों तथा सिंगल सुपर फॉस्‍फेट (एसएसपी) की पूर्व रियायत योजना के अंतर्गत शामिल थे। 
  • एफसीओ के अंतर्गत उपलब्‍ध कराए गए अनुसार द्वितीयक और सूक्ष्‍म पोषक-तत्‍वों (सल्‍फर ‘एस’ को छोड़कर) ऊपर उल्लिखित उर्वरकों का काई प्रकार भी राजसहायता के लिए पात्र होता है। ऐसे उर्वरकों में द्वितीयक और सूक्ष्‍म-पोषक-तत्‍वों (एस’ को छोड़कर) अलग से प्रति टन राजसहायता लागू होती है ताकि प्रारंभिक पोषक-तत्‍वों सहित उनके प्रयोग को प्रोत्‍साहित किया जा सके।  
  • एक अंतर-मंत्रालयीन समिति (आईएमसी) का गठन किया गया है जिसके अध्‍यक्ष सचिव (उर्वरक) हैं तथा कृषि एवं सहकारिता विभाग (डीएसी), व्‍यय विभाग (डीओई), योजना आयोग तथा कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग (डीएआरई) के संयुक्‍त सचिव स्‍तर के अधिकारी सदस्‍य हैं। यह समिति सरकार (उर्वरक विभाग) द्वारा लिए गए निर्णय हेतु वित्‍तीय वर्ष के प्रारम्‍भ होने से पहले ‘एन’, ‘पी’, ‘के’ और ‘एसके लिए प्रति पोषक-तत्‍व राजसहायता की सिफारिश करती है। आईएमसी पुष्‍ट राजसहायता प्राप्‍त उर्वरकों पर प्रति टन अतिरिक्‍त राजसहायता की सिफारिश करता है जिसमें द्वितीयक (एस’ के अलावा) तथा सूक्ष्‍म-पोषक-तत्‍व होते हैं। समिति उत्‍पादकों/आयातकों के प्रयोग के आधार पर राजसहायता व्‍यवस्‍था के अंतर्गत नए उर्वरकों को शामिल करने की सिफारिश करती है और इसका सरकार के निर्णय हेतु भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा मूल्‍यांकन कराए जाने की आवश्‍यकता है।
  • आईएमसी की सिफारिश पर वर्ष 2010-11 के लिए सरकार द्वारा प्रत्‍येक पोषक-तत्‍व 'एन', 'पी', 'के' और 'एस' पर वार्षिक तौर पर एनबीएस का भुगतान किया जाएगा। वर्ष 2010-11 के लिए 1 अप्रैल, 2010से प्रत्‍येक राजसहायता-प्राप्‍त उर्वरकों के लिए प्रति कि.ग्रा. एनबीएस तथा प्रति टन एनबीएस की घोषणा की गई है।
  • स्‍वदेशी इकाइयों द्वारा तैयार उर्वरकों, उर्वरक आदानों के आयात और उत्‍पादन सहित उर्वरकों के वितरण और संचलन की पीएण्‍डके उर्वरकों की निवर्तमान रियायत योजना के अनुसार ऑनलाइन वेब आधारित ''उर्वरक निगरानी प्रणाली (एफएमएस)'' के जरिए निगरानी की जा रही है।
  • अनिवार्य वस्‍तु अधिनियम 1955 (ईसीए) के अंतर्गत अब भारत में उत्‍पादित/आयातित नियंत्रणमुक्‍त उर्वरकों का 20% मूल्‍य संचलन नियंत्रण में है। उर्वरक विभाग अल्‍प सेवा क्षेत्रों में आपूर्तियों को पूरा करने के लिए इन उर्वरकों के संचलन को विनियमित करेगा।
  • एनबीएस के अलावा, रेल और सड़क द्वारा नियंत्रणमुक्‍त उर्वरकों के संचलन और वितरण हेतु भाड़ा उपलब्‍ध कराया जा रहा है ताकि देश में उर्वरकों की व्‍यापक उपलब्‍धता कराई जा सके।
  • खुली सामान्‍य अनुज्ञप्ति (ओजीएल) के अंतर्गत मिश्रित उर्वरकों के 13 ग्रेडों सहित राजसहायताप्राप्‍त पीएण्‍डके उर्वरकों का आयात का आदेश दिया गया है। इससे पूर्व, आयातित मिश्रित उर्वरकों के लिए कोई रियायत उपलब्‍ध नहीं थी। अब एनबीएस आयातित मिश्रित उर्वरकों के लिए भी उपलब्‍ध है। तथापि, आयातित अमोनियम सल्‍फेट (एएस) पर राजसहायता लागू नहीं होगी, क्‍योंकि एनबीएस केवल सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों फैक्‍ट और जीएसएफसी द्वारा अमोनियम सल्‍फेट पर ही लागू है।
  • यद्यपि यूरिया को छोड़कर राजसहायता-प्राप्‍त उर्वरकों का बाजार मूल्‍य मांग आपूर्ति बकाया के आधार पर तय किया जाता है, उर्वरक कंपनियों को उर्वरक बैगों पर दी गई राजसहायता सहित अधिकतम खुदरा मूल्‍य (एमआरपी) मुद्रित करनी होती हैं। मुद्रित निवल एमआरपी से अधिक पर बिक्री करना ईसी अधिनियम के अंतर्गत दंडनीय होता है
  • कस्‍टमाइज्‍ड उर्वरकों और मिश्रित उर्वरकों के उत्‍पादन कस्‍टमाइज्‍ड उर्वरकों के निर्णय और कृषि प्रयोजन के लिए मिश्रित उर्वरकों के आदानों के रूप में जिलों में उनकी प्राप्ति के बाद उत्‍पादकों/आयातकों से राजसहायता-प्राप्‍त उर्वरक लेने के पात्र होते हैं कस्‍टमाइज्‍ड उर्वरकों और मिश्रित उर्वरकों की बिक्री पर अलग से कोई राजसहायता नहीं की जाती।
  • नेफ्था आधारित कैप्टिव अमोनिया का इस्‍तेमाल करके मिश्रित उर्वरकों का उत्‍पादन करने वाले स्‍वदेशी उत्‍पादकों को अलग से अतिरिक्‍त राजसहायता उपलब्‍ध कराई जाती है ताकि 'एन' के उत्‍पादन की उच्‍च लागत की प्रतिपूर्ति की जा सके। तथापि, यह दो वर्ष की अधिकतम अवधि के लिए होगा जिसके दौरान इकाइयों को गैस में परिवर्तित करना होगा या आयातित अमोनिया का इस्‍तेमाल करना होगा। अतिरिक्‍त राजसहायता की मात्रा को अध्‍ययन और प्रशुल्क आयोग की सिफारिशों के आधार पर व्‍यय विभाग के परामर्श से उर्वरक विभाग द्वारा अंतिम रूप दिया जा
  • प्रथम चरण के दौरान एनबीएस को उद्योग के जरिए रिलीज किया जा रहा है। डीएपी/एमओपी/मिश्रित उर्वरकों/एमएपी/टीएसपी/एसएसपी और एएस के उत्‍पादकों/आयातकों को एनबीएस का भुगतान विभाग द्वारा अधिसूचित प्रक्रिया के अनुसार जारी किया जाता है।

(ख)   पोषक तत्‍वों की प्रति कि.ग्रा. पोषक तत्‍व आधारित राजसहायता

पोषक तत्‍व आधारित राजसहायता नीति के तहत गठित अंतरमंत्रालयी समिति की सिफारिशों पर आधारित सरकार ने एन, ‘पी’, ‘के’ और एस (नाइट्रोजन, फॉस्‍फेट पोटाश और सल्‍फर) के लिए प्रति कि.ग्रा. एनबीएस की अनुमति प्रदान की है तथा 2010-2011 से 2017-18 के लिए फॉस्‍फेट युक्‍त और पोटाशयुक्‍त उर्वरकों पर प्रति मी.टन राजसहायता की धनराशि इस प्रकार है:

वर्ष 2011-11 से 2017-18 के लिए एन’, ’पी’, ‘के’, ‘एस पोषकतत्वों के लिए प्रति बैग एनबीएस दरें:

                                                      एनबीएस दरें (रु. प्रति बैग)

 

 

 

पोषकतत्व

1 अप्रैल से 31 दिसंबर 2010*

1 जनवरी से 31 मार्च 2011**

2011-12

2012-13

2013-14

2014-15

2015-16

2016-17

2017-18

‘एन’ नाइट्रोजन

23.227

23.227

27.153

24.000

20.875

20.875

20.875

15.854

18.989

‘पी’ फॉस्फेट

26.276

25.624

32.338

21.804

18.679

18.679

18.679

13.241

11.997

‘के’ पोटाश

24.487

23.987

26.756

24.000

18.833

15.500

15.500

15.470

12.395

‘एस’ सल्फर